लेखनी कविता - कैलेंडर - बालस्वरूप राही
कैलेंडर / बालस्वरूप राही
घर में सजी हुई चीजों में
कैलेंडर का ठाट निराला।
सुन्दर-सुन्दर चित्रों वाला,
चिकना-चिकना, रंग बिरंगा,
फर-फर फहराता है जैसे
लाल किले पर लगा तिरंगा।
फूलदान से भी बढ़-चढ़ कर
घर को शान बढ़ाने वाला।
साल, महीना, दिन, तारीखे,
सब है हमको याद जुबानी,
टीचर जी के बाद यही है,
शायद सबसे ज्यादा ज्ञानी।
जो भी पूछो बतलाएगा,
इसने उत्तर कभी न टाला।
पापा-मम्मी खुश हो जाते
जब पहली तारीख बताता,
हमें छुट्टियाँ दिखा-दिखा कर
बार-बार कितना ललचाता।
इतवारों के मुँह पर लाली
शेष दिनों का मुँह है काला।